पर्यावरण प्रदूषण (Environmental Pallution)
वह प्रक्रिया जिसके कारण हमारा भोजन, हवा तथा जल गन्दा या दूषित हो जाये हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर दे, वातावरणीय अथवा पर्यावरणीय प्रदूषण कहलाती है। अथवा,
वायु, जल व मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में होने वाले परिवर्तनों को जो मानव जीवन, उनके रहन-सहन तथा अन्य जीवों पर कुप्रभाव डालते हैं, पर्यावरणीय प्रदूषण कहलाते हैं ।
दूसरे शब्दों में पर्यावरण में अवांछनीय तत्वों के मिल जाने से उसमें अनेक परिवर्तन आ जाते हैं जिसे पर्यावरणीय प्रदूषण कहते हैं
पर्यावरण प्रदूषण के अन्तर्गत पर्यावरण की गुणवत्ता कम हो जाती है अथवा नष्ट हो जाती है । भौतिक एवं औद्योगिक विकास के कारण अनावश्यक पदार्थ इतना इकट्ठा हो गया है कि इससे पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न हो रहा है ।
पर्यावरण प्रदूषण के कारण (Causes of Environmental Pollution)
पर्यावरण प्रदूषण आज केवल भारत की ही समस्या नहीं है । यह एक सम्पूर्ण विश्व की समस्या है । नगरीकरण एवं औद्योगीकरण को प्रश्रय मिल रहा है जिससे पर्यावरण की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, दिन-प्रतिदिन स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं । मानवीय क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अधिक प्रयोग के कारण पर्यावरण की गुणवत्ता कम हो गयी है। वनों के कटने से एवं रासायनिक खादों के प्रयोग से कृषि क्षेत्र में तथा औद्योगीकरण में रसायनों के उपयोग आदि से मानव का जीवन प्रभावित हो रहा है ।
हमें प्राकृतिक संसाधनों एवं स्रोतों के उपयोग करने की पूर्ण स्वतन्त्रता मिल गयी है 1 हम स्वच्छन्द रूप से इनका प्रयोग कर रहे हैं जिससे पर्यावरण में असन्तुलन उत्पन्न हुआ है। और अनेक प्रकार के प्रदूषणों का समावेश हुआ है । मूल रूप में पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले निम्नलिखित कारण हैं-
1. जनसंख्या में वृद्धि (Growth in Population ) — जनसंख्या में वृद्धि के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन हुआ है । जल, वायु, ध्वनि एवं अन्य प्राकृतिक समस्याएँ बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। हमारे रहन-सहन के आवश्यक संसाधन एवं खाद्य पदार्थों पर जनसंख्या वृद्धि के कारण बहुत दबाव बढ़ जाने से समस्त पर्यावरण विकृत हो गया है ।
2. औद्योगीकरण (Industrialisation) – मनुष्य ने अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये उद्योगों का अधिक सहारा लिया है जिससे प्राकृतिक संसाधनों का अनियन्त्रित उपयोग बढ़ गया है जिसके भयंकर दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। औद्योगीकरण में भू, जल, तापमान, स्वास्थ्य, वायु, ध्वनि, वन, कृषि आदि सभी प्रभावित हुए हैं जो प्रदूषण फैलाने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं ।
3. शहरीकरण (Urbanisation)—दिन-प्रतिदिन गाँव की परिस्थितियाँ बदलने के कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। गाँवों में जनसंख्या घटती जा रही है। वनस्पतियों का संरक्षण नहीं हो रहा है । पेड-पौधे कम होते जा रहे हैं। इधर शहरों में जनसंख्या पर दबाव बढ़ गया है। जिससे गन्दी बस्तियों का विकास हो रहा है। प्राकृतिक वस्तुओं का दोहन रहा है और पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है ।
4. रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग (Use of Fertilizer and Pesticides) - अधिक उत्पादन के लिए रासायनिकों खादों का प्रयोग अधिक किया जा रहा है। दूसरी ओर फसलों को कीड़े-मकोड़ों से होने वाली हानि से बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं का अधिक तादाद में प्रयोग किया जा रहा है। ये मिट्टी के माध्यम से जल स्रोतों तक पहुँचते हैं, जिससे पर्यावरण एवं जल प्रदूषित हो रहा है जो जीव-जन्तुओं और मनुष्यों के लिए हानिकारक है।
5. वन सम्पदा का ह्रास(Deforestation) – अपनी आवश्यकताओं एवं स्वार्थ सिद्धि हेतु मानव ने वनों को काटना प्रारम्भ कर दिया है। वनों को काटकर अपने रहने के लिए ऊँची-ऊँची इमारतों का निर्माण कर लिया है। वनों के कटने से वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है । ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइ ऑक्साइड की बढ़ोत्तरी हुई है जिससे फेफड़ों की बीमारियाँ तथा मानसिक विकृतियाँ बढ़ी हैं ।
6. युद्ध (War) — राष्ट्रों के विकास के साथ-साथ दिन-प्रतिदिन आतंकवाद भी प्राणघातक कैंसर रोग की तरफ बढ़ रहा है जिसका किसी भी राष्ट्र के पास इलाज नहीं दीख रहा है, यह युद्ध की सम्भावनाओं को निमन्त्रण दे रहा है। युद्ध होने से धूल और विषैला धुआं वायु में फैलकर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है । विषैले पदार्थों के समुद्र के जल में मिल जाने से समुद्री जीव-जन्तुओं के मरने की सम्भावना बढ़ जाती है ।
7. यातायात (Transportation ) — वायु को प्रदूषित करने में यातायात वाहनों का बड़ा योगदान है । वाहनों से निकलने वाला धुँआ पर्यावरण में फैलकर वायु को प्रदूषित करता है। वाहनों से निकलने वाली गैसें वायु को विषैला बना देती हैं जो मनुष्यों एवं जीव-जन्तुओं के लिए हानिकारक हैं ।