कैल्शियम
यह एक उपयोगी लवण है। इसकी प्राप्ति का सबसे उत्तम साधन दूध है। इसके अतिरिक्त कैल्शियम मक्खन, घी, अण्डा, माँस, मछली जैसे पशुजन्य जगत से तथा पत्तेदार सब्जी, फूलगोभी, पातगोभी, सूखे मेवे, दालों में भी होता है।
लगभग 6 माह की आयु से 13-14 वर्ष तक इसकी विशेष आवश्यकता पड़ती है।
उपयोगिता -
1. दाँत तथा हड्डियों के निर्माण में सहायक।
2. अस्थियों को दृढ़ बनाना।
3. रक्त जमाने की क्रिया में विशेष भूमिका। 4. हृदय की गति को दग्दर्शन (द्वितीय सेमेस्टर) सामान्य बनाना।
5. माँसपेशियों को क्रियाशील बनाना।
6. खमीरों का रासायनिक क्रिया में महत्वपूर्ण स्थान ।
कैल्शियम की कमी का प्रभाव
1. दाँत कमजोर तथा मसूड़ों से रक्त आना।
2. रक्त जमाने की क्रिया में बाधा।
3. त्वचा सूखी, चित्तेदार तथा खुरदरी हो जाती है।
4. अस्थियाँ कमजोर एवं विकृत हो जाती हैं। 5. गर्भपात की शिकायत हो जाती है।
6. जोड़ों में दर्द रहने लगता है।
7. भूख कम लगती है।
8. शरीर का संतुलित विकास रुक जाता है।
फास्फोरस
यह भी कैल्सियम की भाँति एक उपयोगी लवण है। शरीर के सभी खनिज का लगभग 1/4 भाग फास्फोरस होता है। कुल शरीर के फॉस्फोरस का लगभग 80% भाग की शरीर की अस्थियाँ तथा दाँत के निर्माण में तथा लगभग 20% भाग कोमल ऊतकों में पाया जाता है।
कैल्शियम एवं फास्फोरस एक-दूसरे के पूरक हैं। फास्फोरस दूध, पनीर, माँस, मछली, अण्डे की सफेदी, कलेजी, गरी, मेवे, अनाजों तथा दालों में पाया जाता है। फलों तथा सब्जियों में इसकी मात्रा कम होती है। परन्तु सोयाबीन तथा काबुली चने में यह पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
फास्फोरस के कार्य
1. अस्थियाँ एवं दाँतों के निर्माण में सहायक।
2.रक्त के अम्लीय तथा क्षारीय तत्व का संतुलन बनाए रखता है।
3. नाड़ी तन्त्र को स्वस्थ एवं क्रियाशील बनाता है।
4. रक्त के शुद्धिकरण में योगदान देता है।
5. प्रतिदिन लगभग 1 ग्राम फास्फोरस अवश्य लेना चाहिए। फास्फोरस दाँतों एवं अस्थियों को सफेद, मजबूत तथा चमकदार बनाता है।
लोहा (आयरन)
स्वास्थ्य, शक्ति एवं रोगक्षमता के लिए लोहा अत्यन्त उपयोगी लवण है। इसकी मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है। परन्तु शरीर में लगभग 4 या 5 ग्राम तक उपस्थित रहता है। शरीर में पाए जाने वाले कुल लोहे का लगभग 70-75 प्रतिशत भाग रक्त में हीमोग्लोबिन के रूप में पाया जाता है, तथा शेष भाग यकृत, वृक्क तथा अस्थि मज्जा में होता है।
लोहा वनस्पति जगत एवं पशु जगत दोनों से प्राप्त होता है। वनस्पति जगत से यह हरी सब्जी, अनाज, मटर, सेम, पालक, गाजर, शकरकन्द, प्याज, खीरा, अनार, दालों, सेब, अनानास, शहद, मुन्नका, किशमिश, अंजीर, मेवों से प्राप्त किया जाता है। पशु जगत में यह अण्डा, मांस, मछली, कलेजी से भी प्राप्त होता है।
लोहे के कार्य -
1. लोहा रक्त के लाल कणों के हीमोग्लोबिन का एक मुख्य भाग है।
2. लोहा लाल रक्त कणों के निर्माण में सहायक होता है।
3. शरीर को स्वस्थ बनाता है।
4. पाचक रसों की खमीरी क्रिया में सहायक होता है।
5. गर्भवती स्त्रियों, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए एक टॉनिक होता है।
लोहे की कमी का प्रभाव
1. शरीर में लोहे की कमी से रक्त अल्पता रोग हो जाता है।
2. शरीर में रक्त की कमी होने लगती है।
3. त्वचा तथा आँखें पीली हो जाती हैं।
4. शरीर शिथिल पड़ने लगता है।
5. हृदय की धड़कन बढ़ जाती है।
आयोडीन की कमी
1. इसकी कमी से थाइरॉइड ग्रन्थि बढ़ जाती है और घेंघा का रोग (Goiter) हो जाता है। 2. मानसिक विकास में बाधा होती है।
3. बच्चों के शरीर की वृद्धि रुक जाती है।
4. माँसपेशियाँ कमजोर एवं शिथिल हो जाती हैं।
इस खनिज लवणों के अतिरिक्त भोजन में सोडियम, कॉपर, पोटेशियम, मैंगनीशियम, गन्धक तथा सल्फर जैसे लवण भी पाये जाते हैं। इन लवणों की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है परन्तु यह शरीर के लिए उपयोगी होते हैं। भोजन में प्रयोग आने वाला नमक सोडियम है यह भोजन को स्वादिष्ट बनाता तथा भोजन के सुरक्षीकरण के लिए उपयोगी होता है। इसकी शरीर में कमी हो जाने पर थकावट का अनुभव होता है, टाँगों तथा पेट की मांसपेशियाँ शिथिल पड़ जाती हैं।
पोटेशियम कोशिकाओं तथा रक्त में पाया जाता है। यह शरीर को स्वस्थ बनाता, घाव तथा सूजन को कम करता तथा अस्थियों को दृढ़ बनाता है इसकी कमी से कब्ज, चिड़चिड़ापन, उदासीन एवं हृदय कमजोर हो जाता है। व्यक्ति अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। इसी प्रकार मैगनिशियम शरीर की वृद्धि में सहायक होता है। यह लोहे के साथ मिलकर कार्य करता है। यह कैल्शियम तथा फास्फोरस को क्रियाशील बनाता है। खमीरों की क्रिया में सहायक होता है। ताँबा शरीर के लिए उपयोगी होता हैं यह रक्त में हीमोग्लोबिन बनाने में सहायक होता है। विटामिन सी एवं वसा के लिए उपयोगी है। गन्धक प्रोटीन के पाचन के लिए आवश्यक है। यह अण्डा, माँस, मछली, दालों तथा अनाजों में पाया जाता है। यह नाखून तथा बालों की वृद्धि के लिए उपयोगी है।
खनिज तत्वों की कमी से हानि-
(1) शरीर में कैल्शियम तत्व की कमी से बच्चों में रिकेट्स रोग उत्पन्न हो जाता है तथा स्त्रियों में कैल्शियम की कमी उनके प्रजनन अंगों को प्रभावित करती है।
(2) फास्फोरस तत्व की कमी हड्डियों को कमजोर बनाती है तथा शरीर में शिथिलता उत्पन्न करती है।
(3) सोडियम की कमी माँसपेशियों में ऐंठन उत्पन्न करती है। शरीर में अम्ल व क्षार की मात्रा को असन्तुलित करती है।
(4) आयरन (लोहा) तत्व की कमी से शरीर में रक्ताल्पता एनीशिया रोग उत्पन्न हो जाता है। गर्भवती महिलाओं, बच्चों तथा किशोरियों के भोजन में लोह तत्व की पर्याप्त मात्रा का होना अति आवश्यक है।
(5) आयोडीन की कमी गले में घेंघा रोग उत्पन्न करती है।