जनसंख्या शिक्षा की परिभाषा
जनसंख्या शिक्षा दो शब्दों से मिलकर बनी है-जनसंख्या और शिक्षा । अर्थात् जिस शिक्षा में जनसंख्या का ज्ञान निहित होता है उसे जनसंख्या शिक्षा कहते हैं। जनसंख्या शिक्षा को समझने के लिए इसकी परिभाषाओं को समझना आवश्यक है, जो निम्नलिखित हैं-
1. यूनेस्को रीजनल सेमीनार, 1970 में कहा गया है, "जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक कार्यक्रम है जो कि जनसंख्या परिस्थितियों का एक परिवार, समुदाय, राष्ट्र या दुनियाँ के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन का प्रावधान इस दृष्टि से करता है जिससे छात्रों में इन परिस्थितियों के प्रति एक उदार अभिवृत्ति उत्पन्न हो तथा वह इन्हीं जिम्मेदारी की भावना के कारण इन परिस्थितियों में व्यवहार करे ।
2. राज्य शिक्षा संस्थान उत्तर प्रदेश के अनुसार, "यह एक ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा विभिन्न वर्गों विशेषकर छात्र-छात्राओं को विश्व के परिप्रेक्ष्य में देश-प्रदेश तथा क्षेत्र की जनसंख्या स्थिति, जनांकिकी के प्रमुख तत्त्वों, जनसंख्या और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों, जनसंख्या वृद्धि के आर्थिक व सामाजिक विकासों इत्यादि की जानकारी दी जा सकती है।
3. वीडरमैन (Viederman) के अनुसार, “जनसंख्या शिक्षा की परिभाषा उस प्रक्रिया की भाँति की जा सकती है जिससे छात्र जनसंख्या प्रक्रियाओं, जनसंख्या की विशेषताओं, जनसंख्या में परिवर्तन के कारणों तथा इनके परिणामों की जो कि उसके स्वयं के लिए, उसके परिवार के लिए, उसके समाज तथा सम्पूर्ण संसार के घटित होते हैं, के सम्बन्ध में शोध एवं खोज करते हैं।"
4. मैसियालसे के अनुसार, “जनसंख्या शिक्षा, मानव जनसंख्या की प्रकृति तथा जनसंख्या परिवर्तन के प्राकृतिक और मानवीय परिव्ययों के विषय में जानकारी करने की विधियों का विश्वसनीय शिक्षण और प्रशिक्षण है ।"
5. जनसंख्या शिक्षा पर हुई राष्ट्रीय गोष्ठी में जनसंख्या शिक्षा के विषय में कहा गया है..." जनसंख्या शिक्षा का लक्ष्य छात्रों को इसे समझाने योग्य बनाना है कि परिवार का आकार नियन्त्रण योग्य हो, जनसंख्या सीमित होने से देश के उच्च जीवन-स्तर को बनाने में मदद मिलेगी तथा छोटा परिवार जीवन-स्तर को भौतिक दृष्टि से उच्च बनाने में योगदान प्रदान कर सकता है। इसके अध्ययन से विद्यार्थी यह भी समझ सकेंगे कि परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य व कल्याण की रक्षा, परिवार की आर्थिक स्थिरता के निश्चय तथा आगे जाने वाली पीढ़ियों की सम्पन्नता के लिए वर्तमान तथा भविष्य के लिए परिवार छोटे होने चाहिए।"
6. यूनेस्को के अनुसार, जनसंख्या शिक्षा को संख्यात्मक पहलू के रूप में या अधिक महत्त्वपूर्ण संस्थाओं के निबन्ध के रूप में ही नहीं जानना चाहिए। इसे जनसंख्या के गुणात्मक पक्ष तथा मानव स्रोत विकास के सम्बन्ध में जानना चाहिए ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जनसंख्या शिक्षा का अर्थ- वर्तमान एवं भावी परिवार के कल्याण, आर्थिक सम्पन्नता तथा राष्ट्रीय जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता करना है ।
जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता
जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से पड़ती है—
(1) राष्ट्रीय प्रगति के लिए (For National Progress) – किसी भी राष्ट्र की प्रगति तभी हो सकती है जबकि वहाँ की जनसंख्या नियन्त्रण में हो । जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति की जीवन शैली में परिवर्तन तथा जनाधिक्य पर नियन्त्रण रखने का प्रयास किया जाता है। राष्ट्रीय प्रगति के लिए स्वस्थ, कर्मठ, निरोगी, श्रमशील नागरिकों की आवश्यकता होती है। ऐसे नागरिकों का निर्माण जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से ही सम्भव है।
(2) आर्थिक विकास के लिए (For The Economic Development)__ जनाधिक्य का परिणाम होता है—बेकारी, भुखमरी तथा बीमारी । जनाधिक्य के कारण विकास की सभी योजनाएँ छोटी पड़ जाती हैं। आर्थिक विकास जिस रफ्तार से होता है उससे कहीं तेज रफ्तार से जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है। यदि आर्थिक विकास में गति लानी है तो जनाधिक्य रोकना होगा। इसके लिए जनसंख्या शिक्षा अनिवार्य है। आर्थिक विकास हेतु संसाधनों की उपलब्धता तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि अनिवार्य होती है
(3) मानव संसाधन कुशलता के लिए (For Human Resources Effeciency)—जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता का प्रमुख कारण व्यक्ति को कुशल मानव संसाधन के रूप में तैयार करना है । जनाधिक्य होने पर आर्थिक विकास हेतु किसी भी प्रकार के प्रयास विकास को गति प्रदान नहीं कर पाते हैं। जनसंख्या शिक्षा मानव को श्रेष्ठ संसाधन के रूप में तैयार करने के लिए सामाजिक दृष्टिकोण का विकास करती है।
(4) परिवार नियन्त्रण कार्यक्रमों की सफलता के लिए (For the Sucess of Family Control Activities)- जनसंख्या शिक्षा परिवार नियन्त्रण की शिक्षा नहीं है लेकिन परिवार नियन्त्रण की महत्ता को समझने के लिए यह शिक्षा आवश्यक मानी जाती है । भारत एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र है । यहाँ परिवार नियन्त्रण का कोई भी कार्यक्रम बाध्यता के आधार पर सफल नहीं हो सकता है इसके लिए जनता का सहयोग आवश्यक है । यदि परिवार नियन्त्रण कार्यक्रम को सफल बनाना है तो ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में कार्यकर्ता तैयार करके भेजने होंगे, इसके लिए जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता है।
(5) परिवार नियोजन के लिए (For the Family Planning)—जनसंख्या शिक्षा द्वारा छात्र-छात्राओं में यह विचार समाविष्ट कर दिया जाये कि छोटा परिवार सदैव सुखी होता है । प्रजातांत्रिक देश में लोगों को परिवार नियोजन के लिए प्रेरित करना जनसंख्या नियन्त्रण का सबसे उत्तम विकल्प माना जाता है । यदि नागरिक एकल तथा छोटे परिवार के गुणों से अवगत हो जायेंगे तो वे बाध्यता में नहीं बल्कि अपनी स्वेच्छा से परिवार नियोजन को अपनायेंगे। इस प्रकार परिवार नियोजन के लिए भी जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता होती है ।
(6) योजनाओं की सफलता के लिए (For the Sucess of Policies) – प्रत्येक राष्ट्र अपने देश के विकास के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएँ बनाता है। जनसंख्या की स्थिति पर योजनाओं की सफलता निर्भर करती है। देश के विकास के लिए भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का विशेष महत्त्व है । हमारी पंचवर्षीय योजनाओं में जिस जनसंख्या को लक्ष्य न बनाकर योजना की रूपरेखा का निर्माण किया जाता है उसमें तथा योजना के प्रारम्भ होने के कुछ समय पश्चात् ही जनसंख्या में अनुमान से अधिक वृद्धि हो जाती है इसके फलस्वरूप योजनाएँ सफल नहीं हो पातीं यदि हम यह चाहते हैं कि योजनाएँ सफल हों तो जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता होगी ।
(7) प्राकृतिक संसाधनों से सामंजस्य के लि, (For the Combination of Natural Resources)— किसी भी देश में प्राकृतिक संसाधन सीमित होते हैं उन्हें घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता है। प्राकृतिक संसाधनों पर मानवीय नियन्त्रण नहीं होता है । मानव निर्मित संसाधनों को घटाया या बढ़ाया भी जा सकता है । जनाधिक्य के दबाव के कारण पर्यावरण में असन्तुलन की स्थिति पैदा हो रही है। जनसंख्या के समक्ष प्राकृतिक संसाधन कम पड़ रहे हैं। इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता है ।
(8) पारिवारिक स्वरूप में परिवर्तन के लिए (For the Change in Family Nature)—–वर्तमान समय में पारिवारिक स्वरूप में परिवर्तन हो रहा है संयुक्त परिवारों के स्थान पर एकल परिवारों में वृद्धि हो रही है। एकल परिवारों की अपनी समस्याएँ हैं । अनुभव की कमी के कारण ऐसे परिवारों को जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता होती है ।
जनसंख्या शिक्षा का महत्व
भारत मे जनसंख्या शिक्षा का महत्त्व भारत में जनसंख्या शिक्षा का महत्त्व इसलिए है क्योंकि भारत एक गरीब देश है । यहाँ पर संसाधन सीमित हैं। जनसंख्या वृद्धि से रहन-सहन और जीवन का स्तर निम्न होता है । वास्तव में रहन-सहन के स्तर का सम्बन्ध जीवन के लिए आवश्यक साधनों और वस्तुओं में संख्यात्मक और गुणात्मक उपलब्धि से रहता है । भोजन, शुद्ध पेयजल, शुद्ध वायु और वातावरण, ऊर्जा, आवास, कपड़े, शिक्षा, मनोरंजन, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाएँ, सुरक्षा, रचनात्मक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ आदि यदि अधिक मात्रा में तथा अच्छे स्तर की उपलब्ध हैं तो जीवन स्तर उच्च होगा । अधिक जनसंख्या के कारण इनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में चाहिए । भारत जैसे विकसित हो रहे राष्ट्र में जहाँ सभी प्रकार का विकास हो रहा है, जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध कराने की समस्या बनी रहती है । जनसंख्या वृद्धि अत्यन्त घातक है । सीमित साधन तथा बढ़ती जनसंख्या जीवन की संभावना को सीमित करती है ।
जनसंख्या शिक्षा के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है-
(1) जनसंख्यात्मक परिस्थिति को समझना (Understanding Population Situation)— जनसंख्यात्मक परिस्थिति से आशय है जन्म एवं स्थानान्तरण तथा जीवन के अन्य पक्षों के बीच सहसम्बन्ध । इसका अभिप्राय है जन्मदर पर नियन्त्रण रखने के लिए बढ़ती जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता उत्पन्न की जाये विशेष तौर पर आधुनिक तकनीकों से लोगों को परिचित कराया जाये तथा जन्म पर नियन्त्रण के लाभ लोगों को बताये जायें।
(2) मूल स्तर से प्रारम्भ करने की आवश्यकता (Need of Starting from Grassroots Level)—सामान्यतया लोगों की यह गलत धारणा है कि जनसंख्या शिक्षा का आशय है केवल वयस्कों के लिए शिक्षा, बच्चों के लिए यह शिक्षा नहीं है ।
(3) भविष्य की पीढ़ी को तैयार करना (Preparing the Future Generation)—हमारे देश की जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत भाग 18 वर्ष से नीचे की आयु का है । अतः विद्यालय के पाठ्यक्रम में इस शिक्षा का परिचय देने की आवश्यकता है ।
(4) जीवन की गुणवत्ता की उन्नति (Promotion of the Quality of Life)— भारत जैसे विशाल देश में बढ़ती जनसंख्या दर के कारण सभी साधन कम पड़ जाते हैं। आर्थिक ढाँचा इस तरह का विकसित हो गया है कि अमीर व्यक्ति और अधिक अमीर होते जा रहे हैं तथा गरीब व्यक्ति और अधिक गरीब होते जा रहे हैं, गरीब में अधिक बच्चों का जन्म होने से तथा सभी को भोजन और कपड़ा उपलब्ध कराने के लिए अधिक श्रम करना पड़ता है इस प्रकार उनका जीवन स्तर भी निम्न से निम्नतर होता जाता है । इस प्रकार जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से उनकी समस्याओं का समाधान संभव है ।
(5) जनसंख्या जागरूकता उत्पन्न करना (Creating Population Awareness)—परिवार नियोजन का सन्देश फैलाने के लिए ही मुख्य रूप से सरकार द्वारा परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाया जाता है । परिवार नियोजन के सन्देश को फैलाने के लिए संचार साधनों के अतिरिक्त शैक्षिक कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं, जिससे अनौपचारिक रूप से भी इस सन्देश का प्रसार हो ।
(6) जंगल की भाँति फैलती गरीबी की जाँच (Check on Wide Spread Poverty) — गरीबी के मूल में विकराल रूप से बढ़ती जनसंख्या ही है । भारत में जन्मदर उच्च है । भारत ग्रामों का देश है, जहाँ लोग गरीब तथा अशिक्षित हैं । वे परिवार नियोजन तथा जन्मदर नियन्त्रण का आर्थिक मूल्य नहीं समझते हैं । वे यह समझते हैं कि अधिक बच्चों के होने तथा उनके बड़े होकर काम करने पर अधिक आय अर्जित की जा सकेगी । जनसंख्या शिक्षा के माध्यम से वे अपनी बढ़ती गरीबी की जाँच कर सकेंगे ।
(7) जनसंख्या समस्याओं को दूर करना (Remedies to Population Problems)—प्रत्येक व्यक्ति एवं राष्ट्र जिन जनसंख्या सम्बन्धी समस्याओं का प्रतिदिन सामना करते हैं, जनसंख्या शिक्षा के कार्यक्रम उन समस्याओं के समाधान में अपना योगदान प्रदान करते हैं। ये समस्याएँ सामाजिक परिवर्तन, असमानता, सामाजिक न्याय, अन्तः निर्भरता तथा आत्म मूल्यांकन पर निर्भर करती हैं ।
(8) परिवार नियोजन कार्यक्रम की उन्नति (Progress of Family Planning Programme)- भारत का परिवार नियोजन कार्यक्रम असफल रहा है तथा इससे इच्छित परिणाम प्राप्त नहीं हुए हैं, क्योंकि इस समस्या से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों को हम ठीक प्रकार से समझ नहीं पाये हैं। अज्ञानता के कारण परिवार नियोजन क कार्यक्रम धीमी गति लेता है, अनौपचारिकता तथा अकाल्पनिकता के कारण निर्णय लेने की प्रकृति वह उच्च स्तर तक प्रारम्भ नहीं हो पाती है, यही कारण कि जनसंख्य शिक्षा महत्त्वपूर्ण स्तर तक नहीं पहुँच पाती हैं।
(9) शीघ्र एवं सार्वभौमिक विवाह की चेतावनी (Restriction on Early Universal Marriage)– भारत में विवाह एक धार्मिक एवं सामाजिक समारोह माना जाता है । भारत में तीव्रता से बढ़ती जनसंख्या का यह मुख्य कारण है। जनसंख्या शिक्षा लोगों में विवाह की आयु के सम्बन्ध में जागरूकता उत्पन्न करती है।
(10) प्रभावी नागरिकता के लिए तैयारी (Preparation for Citizenship 1 and Effective Living) — भारत में लोगों को जनसंख्या शिक्षा देनी आवश्यक है। जनसंख्या शिक्षा का अभिप्राय है— प्रभावी नागरिकता के लिए वयस्क पीढ़ी की तैयारी। यह कार्य जनसंख्या की शिक्षा के माध्यम से ही हो सकता है ।
(11) राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम एवं संचार साधन (National Family Learning Programme & Communication Means) — अन्य विकसित राष्ट्रों की भाँति ही भारत ने भी जन्मदर पर नियन्त्रण रखने के लिए राष्ट्रीय पॉलिसी तथा कार्यक्रम निर्धारित किये हैं। इनका प्रचार करने के लिए पेन्टिंग, पोस्टर आदि का प्रयोग किया जाता है। इनके माध्यम से परिवार नियोजन तथा जन्मदर नियन्त्रण पर अपने विचारों से लोगों को अवगत कराया जाता है। सरकार की धारणा है प्रकार बच्चे जनसंख्या के विषय में जागरूक तथा शिक्षित होंगे। इस प्रक सूचनाएँ आकस्मिक होती हैं तथा अपर्याप्त होती हैं ।